उत्तराखंड

मूल भूत सुविधाओ के अभाव में वीरान पड़ा कृषि प्रदान गांव गोंख,

मूल भूत सुविधाओ के अभाव में वीरान पड़ा कृषि प्रदान गांव गोंख,

पहाड़ों में आज भी कई ऐसे कृषि प्रदान ऋतु प्रवासी नगर छेत्र के गांव,तोक,है जो आज के विकास के युग में भी सड़क जैसी मूल भूत सुविधाओं के अभाव में आज सुनसान वीरान होना के कगार पर है, ज्योतिर्मठ विकास खंड में ऐसा ही एक राजस्व ग्रीष्मकालीन ऋतु प्रवासी गांव है गोंख गांव,जो पैन खंडा छेत्र ज्योतिर्मठ के आधा दर्जन गांवों का ऋतु प्रवासी ग्रीष्मकालीन बसावट और काश्तकारी के लिए सबसे उपयुक्त माना जाने वाला छेत्र माना जाता था,यहां प्रचुर मात्रा में जल संसाधन होने से पहले पन घट, चक्की, गोचर, खेती बाड़ी काश्तकारी पशु पालन बकरी पालन बड़ी संख्या में होता था,जो आज बिना सड़क कनेक्टिविटी और जंगली जानवरों के द्वारा फसलों को पहुंचाए जाने वाले भारी नुकसान के कारण मजबूरन अधिकतर गांवों के परिवार यहां काश्तकारी और पशु धन पालन व्यवसाय को छोड़ने लगे है, हरित जैव विविधता से भरे इस खूबसूरत गोंख वैली में बिजली आपूर्ति भी सुचारु है साथ ही पेयजल भी भरपूर मात्रा में है,लेकिन सड़क की कमी के चलते यहां तक पहुंचने ओर काश्तकारी करने के बाद फसलों को मुख्य बाजार ओर गांव तक ले जाने में काफी दिक्कत होती है साथ ही खड़ी फसलों को यहां जंगली जानवरों द्वारा काफी नुकसान पहुंचाया जाता है जिसके चलते काश्तकारों की सारी मेहनत बर्बाद हो जाती है, लिहाजा अब यहां लोगों ने काश्तकारी करना कम कर दिया है, लिहाजा अब दो तीन परिवार ही यहां खेती बाड़ी कृषि कार्य के साथ पशु पालन कर रहे है, गोंख संघर्ष समिति के अनिल नंबूरी बताते है कि कुछ दशक पूर्व हमसे छेत्र के ग्रीष्मकालीन ऋतु प्रवासी गोंख गांव में सेलंग,सिंहधार,नरसिंह मंदिर,मारवाडी, मनोहर बाग, डांडो, चुनार सहित अन्य गांव के परिवारों की काश्तकारी, पशुपालन, कारोबार चरम पर था यहां हमारी मुख्य फसलों में आलू,राजमा,चौलाई,सेब,मंडुवा, सहित कई नगदी फसलों का बड़ी मात्रा में उत्पादन होता था, पूरा इलाका गुलजार रहता था लेकिन जंगली जानवरों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने के साथ साथ सड़क व्यवस्था नहीं होने से धीरे धीरे लोगों ने यहां काश्तकारी करना कम कर दिया लिहाजा आज यहां खेत खलिहान बंजर होने लगे है लेकिन कुछ परिवार आज भी यहां अपना पुश्तैनी कार्य पशुपालन और काश्तकारी विषम परिस्थितियों में भी जारी रखे हुए है, उन्होंने कहा कि हम यहां तक सड़क संपर्क मार्ग लाने के लिए शासन प्रशासन स्तर पर पत्राचार कर चुके है, लेकिन अभी बात आगे नहीं बढ पाई है,अगर यहां प्रशाशन ओर बन विभाग सड़क मार्ग लाता है तो फिर से हमारे इस घाटी में रौनक लौट सकती है, कहते है कि यहां करीब 2000 नाली से अधिक काश्तकारी भूमि है लोगो की, यहां धौली गंगा घाटी के ऋतु प्रवासी गांवों की तरह हमे भी मूल भूत सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए तभी लोग फिर से यहां वापस लौट सकेंगे,वहीं आज भी गोंख गांव में अपना पशु पालन ओर काश्तकारी कर रही सिंहधार छेत्र की जागरूक महिला नन्दी देवी कहती है कि वो अपने इस ग्रीष्मकालीन गांव को आबाद करने में जुटी हुई है, पशु पालन के साथ उन्होंने खेती बाड़ी भी की हुई है कहती है कि अगर सड़क आज जाती तो लोग वापस लौट आते यहां ओर हम भी एक होम स्टे खोल सकते यहां ताकि हमारे बाद बच्चे यहां अपना रोजगार चला सके पहले मेने खुद अपने इन्हीं खेतों में लाखों की कीमत के आलू राजमा चौलाई फसल उगाई है,लेकिन अब मेहनत के बाद सारी मेहनत पर जंगली सूअरों का आतंक पानी फेर देता है,इधर सड़क सुविधा को लेकर NDBR प्रशासन से जानकारी लेने पर बताया गया कि गोंख गांव तक के लिए सुनील किलोमीटर 6से गोंख गांव तक के लिए लोक निर्माण विभाग द्वारा प्रस्तावित सड़क मार्ग का अबतक सिर्फ ज्वाइंट सर्वे हुआ है,इससे आगे की प्रक्रिया अभी लंबित है, डेढ़ दशकों से लम्बित पड़े इस सड़क मार्ग निर्माण प्रकरण पर अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं होने से लोगों में भी खासी नाराजगी है,लिहाजा दशकों पहले काश्तकारी और पशु पालन में अग्रणी रहने वाले गोंख जगथली छेत्र में सड़क सुविधा के अभाव ओर जंगली जानवरों और सुअरों के झुण्डों द्वारा पूरी फसल पट्टी को बर्बाद करने के कारण अब इस हरित घाटी में सन्नाटा पसरा नजर आ रहा है, महज दो तीन परिवार है जो आज भी अपने जल जंगल और जमीन में काश्तकारी ओर पशु पालन करने पहुंच रहे हैं और शाम को वापस अपने मूल निवास पर लौटने को मजबूर है,हालांकि इंद्रा प्वाइंट ईको टूरिज्म रूट भैना,ज्योतिर्मठ से होकर गोंख कंपार्टमेंट तक नन्दा देवी राष्ट्रीय पार्क का नया कॉन्सेप्ट फायर पुलिया पथ निर्माण कार्य भी प्रस्तावित है, ऐसे में अगर समय रहते गोंख छेत्र पैदल संपर्क मार्ग ओर सड़क मार्ग से जुड़ जाता है तो आने वाले दिनों में इस घाटी में पुनः रौनक लौट सकती है,और साथ ही ये छेत्र ईको टूरिज्म, बर्ड वाचिंग, होम स्टे नेचर टूरिज्म, हब भी बन सकता है जिससे यहां पलायन रुकने के साथ साथ लोगों को काश्तकारी, पशु पालन के अलावा रोजगार के अन्य बेहतर संसाधन भी उपलब्ध हो सकेंगे,,,,,,

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